🙏🏽प्रेरक प्रसंग🙏🏽
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"परोपकार की ईंट"
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किसी समय एक विख्यात ऋषि (monk), गुरुकुल (gurukul) में बालकों को शिक्षा प्रदान किया करते थे।
उनके गुरुकुल में बड़े-बड़े राजा- महाराजाओं के पुत्रों से लेकर साधारण परिवार के बालक भी शिक्षा ग्रहण करने के लिए आया करते थे।
वर्षों से शिक्षा प्राप्त कर रहे शिष्यों की शिक्षा पूर्ण होने का अवसर था।
सभी बड़े उत्साह के साथ अपने-अपने घरों को लौटने की तैयारी कर रहे थे, कि तभी ऋषिवर की तेज आवाज सभी के कानो में पड़ी, “आप सभी मैदान में एकत्रित हो जाएं।”
आदेश सुनते ही शिष्यों ने ऐसा ही किया।
ऋषिवर बोले, “प्रिय शिष्यों, आज इस गुरुकुल में आपका अंतिम दिन है,मैं चाहता हूँ कि यहाँ से प्रस्थान करने से पहले आप सभी एक दौड़ में हिस्सा लें।
यह एक बाधा दौड़ होगी और इसमें आपको कहीं कूदना तो कहीं पानी में दौड़ना होगा और इसके आखिरी हिस्से में आपको एक अँधेरी सुरंग से भी गुजरना पड़ेगा।”
तो क्या आप सब तैयार हैं?”
” हाँ, हम तैयार हैं ”, सभी शिष्य एक स्वर में बोले।
दौड़ शुरू हुई---
सभी तेजी से भागने लगे।
वे सभी तमाम बाधाओं को पार करते हुए अंत में सुरंग के पास पहुंचे।
वहाँ बहुत अँधेरा था,और उसमें जगह-जगह नुकीले पत्थर भी पड़े थे जिनके चुभने पर असहनीय पीड़ा का अनुभव होता था।
सभी असमंजस में पड़ गए, जहाँ अभी तक दौड़ में सभी एक सामान बर्ताव कर रहे थे वहीं अब सभी अलग -अलग व्यवहार करने लगे।
सभी ने जैसे-तैसे दौड़ पूरी की और ऋषिवर के समक्ष एकत्रित हुए।
ऋषिवर्- पुत्रों ! मैं देख रहा हूँ,कि कुछ ने दौड़ बहुत जल्दी पूरी कर ली और कुछ ने बहुत अधिक समय लिया, भला ऐसा क्यों ?”
यह सुनकर एक शिष्य बोला- “गुरु जी, हम सभी लगभग साथ-साथ ही दौड़ रहे थे, पर सुरंग में पहुचते ही स्थिति बदल गयी... कोई दुसरे को धक्का देकर आगे निकलने में लगा हुआ था, तो कोई संभल-संभल कर आगे बढ़ रहा था और कुछ तो ऐसें भी थे जो पैरों में चुभ रहे पत्थरों को उठा-उठा कर अपनी जेब में रख रहे थे ताकि बाद में आने वाले मित्रों को पीड़ा ना सहनी पड़े।
इसलिए सब ने अलग-अलग समय में दौड़ पूरी की।”
ऋषिवर्-“ठीक है ! जिन लोगों ने पत्थर उठाये हैं,वे आगे आएं और मुझे वो पत्थर दिखाएँ।”
आदेश सुनते ही कुछ शिष्य सामने आये और पत्थर निकालने लगे---,पर ये क्या जिन्हें वे पत्थर समझ रहे थे, दरअसल वे बहुमूल्य हीरे थे।
सभी शिष्य आश्चर्य में पड़ गए और ऋषिवर की तरफ देखने लगे।
ऋषिवर्-“मैं जानता हूँ, आप सभी इन हीरों को देखकर आश्चर्य में पड़ गए हैं।
असल में मैंने ही इन्हें उस सुरंग में डाला था,और यह दूसरों के विषय में सोचने वालों शिष्यों को मेरा इनाम है।”
👉🏼 मित्रों यह दौड़ भी जीवन की भागम-भाग को दर्शाती है। जहाँ हर कोई कुछ न कुछ पाने के लिए भाग रहा है। पर अंत में वहीं सबसे समृद्ध होता है,जो इस भागम-भाग में भी दूसरों के बारे में सोचने और उनका भला करने से नहीं चूकता है।
अतःआप इस बात को गाँठ बाँध लीजिये कि आप अपने जीवन में सफलता की जो भी इमारत खड़ी करें उसमें परोपकार की ईंटें लगाना कभी ना भूलें, अंततः वही आपकी सबसे अनमोल जमा-पूँजी होगी।”
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